आह ... छोड़ दीजिए मृत्युंजय, मुझे बहुत दर्द हो रहा है..

 एक लड़की की कहराने की आवाज़े आ रही थी, “आह ... छोड़ दीजिए मृत्युंजय, मुझे बहुत दर्द हो रहा है..”

पर ये आवाज सुन मृत्युंजय ने उस लड़की के गले पे हाथ रखते हुए कहा, “दुनिया शादी जोड़ने के लिए करती है, लेकिन मैंने तुमसे शादी सिर्फ तुम्हें तोड़ने के लिए की है, महक अवस्थी। यह सज़ा है तुम्हारी, मेरी बहन को गायब करने की।”

ये बोलकर वो महक के बाकी बचे कपड़े जबरदस्ती खींच के जमीन पर फेक देता है।

“क्या मेरे साथ जबरदस्ती सोने से आपका बदला पूरा हो जाएगा?”

महक ने अपने आँसू को दबाते हुए कहा। उसे काफी दर्द हो रहा था, पर मृत्युंजय किसी हैवान की तरह उसकी साथ बदसलूकी कर रहा था।


"चुप.. बस चुप चाप सहते रहो... मेरे सामने बोलने की हिम्मत कैसे हुए तुम्हारी.."

मृत्युंजय किसी राक्षस की तरह हँस रहा था, पर फिर थोड़ा रुक कर महक के जख्मों पर नामक डालते हुए बोलता है,

"तुम भूल गई हो, कि ये चार दिन की शादी भी मैंने सभी रस्मों और अग्नि को साक्षी मानकर की है। तुम मेरी पत्नी हो, और मुझे हर प्रकार का सुख देना तुम्हारा एक मात्र कर्तव्य है।"

ये कहकर उसने महक के छाती को ढँके हुए एक मात्र दुपट्टे को भी खींच कर फेंक दिया,और अपने होंठों को उसके होंठों पर रख दिया। 

महक इसे अपनी किस्मत मान कर अपनी आँखें कस कर बंद कर लेती है और मृत्युंजय की जबरदस्ती को सहने लगती है। लेकिन उसे क्या पता था कि यह तो बस शुरुआत है।

अगली सुबह, महक बाथरूम में लगे शीशे में अपनी गर्दन पर नील और दांत के निशान देखकर हैरान थी और सोचती है,

“कोई इतना निर्दयी भी कैसे हो सकता है..”

वह अभी अपने ख्यालों में खोई ही थी कि तभी कोई दरवाजा तेजी से पीटता है।

“इतनी देर से क्या कोई नई चाल बुन रही हो मेरे परिवार के खिलाफ? जल्दी निकलो वरना दरवाजा तोड़ दूंगा!

महक जल्दी-जल्दी बाहर निकलती है और तयार हो के नीचे जाती है। वहाँ मृत्युंजय का सारा परिवार नाश्ते के टेबल पे बैठा था। मृत्युंजय की माँ निर्जला ने महक से बोला,

“आओ-आओ बहुरानी, तुम्हारी बाकी की रस्में भी करनी है..”

ये सुनते ही मृत्युंजय की आँखें गुस्से से लाल हो गई, पर वो अपने गुस्से को दबाते हुए अपनी माँ से कहता है,

“माँ, ये कोई बहुरानी नहीं है बल्कि नौकरानी है, इससे घर के काम कराओ यही सज़ा है इसकी।”

ये सुनकर मृत्युंजय की माँ उसको टोकती है,

“शादी के मंडप से तुम्हारी बहन मीरा कहाँ गई इसमे इसका क्या दोष.. ये तो बस केटरिंग का काम करने आई थी”,

ये सुनकर मृत्युंजय चीखते हुए कहता है,

“तो पूछिए इससे क्यों गई थी मीरा के कमरे में? और उसके कमरे के बाहर इतना इधर-उधर क्यूँ झांक रही थी!”

निर्जला फिर अपने बेटे को सही करते हुए कहती है,

“महक कल रात से सौ बार बता चुकी है की वो मीरा के कमरे में सिर्फ खाना देने गई थी।”

मृत्युंजय तिलमिला गया अपनी माँ का एक पराई लड़की की तरफदारी करता देख, इसलिए वो दुबारा बोलता है,

"क्या आपको याद है, महक यहाँ अपने भाई सुधांशु के लिए मीरा का हाथ मांगने आई थी, जिसको मैंने दुत्कार कर भगा दिया था, जिसके कारण ये दोनों भाई बहन ने मिलकर प्लान बनाया और मंडप से मीरा को गायब किया है”

वो महक की कलाई मडोड़ते हुए कहता है। जिसको देख निर्जला गुस्से मे चीखती है,

"क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी मंगेतर शनाया मंडप से क्यों भागी?" अपनी माँ के इस सवाल का मृत्युंजय के पास कोई जवाब नहीं था। निर्जला आगे बोलती है,

"शनाया तो तुम्हारी बिजनेस डील थी, वो कैसे फेल हो गई? क्या उसे भी सुधांशु लेकर भाग गया?"

निर्जला ने आँखे तरेरते हुए कहती है,

दरअसल, बीती रात, मृत्युंजय की शादी उसके बिजनेस पार्टनर कुबेर सोनवानी की बेटी शनाया सोनवानी से होनी है। ये एक शादी कम और बिजनेस डील ज्यादा थी। एक और बार निर्जला ने मृत्युंजय को सुनाते हुए कहा,

"अब तक ये साबित नहीं हुआ की मीरा को महक ने भगाया है और जब तक ये साबित नहीं हो जाता तब तक तुम महक के साथ इस तरह जबरदस्ती नहीं कर सकते।”

ये बोलकर वो नाश्ते की टेबल से चली जाती है।

दरअसल, मृत्युंजय एक अत्यंत निर्दयी व्यक्ति है। उसके लिए हर चीज केवल एक बिजनस है, और हर चीज का मूल्य केवल पैसे में ही है। ऐसा नहीं है कि वह दिल का बुरा है, लेकिन उसने कभी भी प्यार का अनुभव नहीं किया है। लोग भी मृत्युंजय के पास केवल अपने स्वार्थ के लिए ही आते थे। यहाँ तक कि शनाया से उसकी शादी भी उसके लिए एक बिजनस डील ही है। मीरा के मंडप से गायब होने का दोष तो वह महक पर मढ़ सकता है, लेकिन अंदर ही अंदर वह जानता है की शनाया के मंडप से गायब होने में महक का कोई हाथ नहीं है क्योंकि महक और शनाया एक दूसरे से पहले कभी नहीं मिले।

क्या है शनाया और मीरा के मंडप से गायब होने का असली सच? क्या टिक पाएगी रंजिश में की गई महक और मृत्युंजय की शादी ?

इधर,कोने में सहमी खड़ी महक को एक महीने पहले का वो दिन याद आया, सुधांशु और मीरा दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ा करते थे और दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे। जैसे ही सुधांशु को पता चला कि मीरा की शादी किसी और से होने वाली है उससे रहा नहीं गया। उसने महक को अपने और मीरा के बारे में सब कुछ बता दिया।

अपने भाई को उसका प्यार दिलाने के लिए महक उसे लेकर मीरा के घर सारंग विला पहुंची ताकि वो सबको मीरा और सुधांशु के बारे में बात कर उन्हें एक कर पाए। लेकिन मृत्युंजय जो गरीबों को पैरों की धूल समझता था, उसने महक और सुधांशु की बेइज्जती करके उन्हें घर से धक्के मार कर बाहर निकाल दिया। ये सब याद कर वो मन ही मन सोचती है,

“हे भगवान, जल्दी से सुधांशु से मिलवा दो, ताकि इस घमंडी आदमी की गलतफहमी दूर हो। जिसको लगता है कि मेने इसकी बहन को गायब किया है।"

ये सोचकर महक के आँसू निकलने लगते है। मृत्युंजय महक के पास आता है और ज़ोर से उसके बाल खींचकर अपने पास ला के कहता है,

"माँ चाहे तुम्हें जो भी समझे, लेकिन मेरे लिए तुम सिर्फ एक बदला हो, जो मेरी बहन के मिलते ही पूरा हो जाएगा। मैं ऑफिस जा रहा हूँ, और जब वापस आऊं तो तुम खुद ब खुद मेरी सेवा के लिए तैयार रहना।"

मृत्युंजय एक तिरछी मुसकान देते हुए कहता है जिसे सुन महक बस सिसक के रह जाती है।

इधर मृत्युंजय महक को मेंटल और फिज़िकल टॉर्चर कर के खुशी महसूस कर रहा था की तभी पीछे से मृत्युंजय की माँ उसको आवाज़ लगाती है,

“मृत्युंजय रुको, और महक को भी ऑफिस ले जा बेटा, वहाँ के मंदिर में ये पूजा करेगी मैंने स्टाफ को फोन कर के सब समझा दिया है। तू बस इसको अपने साथ ले जा आखिर ऑफिस वाले भी तो देखे की क्या कोहिनूर हीरा मिला है हमे बहु के रूप मे।”

जिसको सुन मृत्युंजय झुँझला के कहता है,

”क्या माँ आप भी कभी-कभी बहक जाती है, ये हीरा नहीं बल्कि हीरे को निगलने वाली काली नागिन है!” जिसको सुन निर्जला जी नाराज हो जाती है और ऑर्डर देते हुए कहती है,

“अगर तुम्हें हमारा ज़रा भी मान है तो इसे अपने साथ ले के जाओ,”

ये निर्जला जी का हमेशा का ब्रम्हासत्र है जब भी उनको मृत्युंजय को कोई काम कराना होता है तो वो उसको यही लाइन बोल के मना लिया करती है।

मृत्युंजय दांत पीसते हुए अपने बगल वाले सीट का दरवाजा खोल देता है जिसपे महक आ के बैठ जाती है। महक डर से मृत्युंजय की तरफ नहीं देखती है वो खिड़की के बाहर निर्जला जी को देख कर दोनों हाथ जोड़ लेती है जिसको देख निर्जला जी ईमोशनल होते हुए उसके हाथ पकड़ लेती है और कहती है,

“बहुत अकेला है मेरा बेटा महक, तुम कभी मृत्युंजय का साथ मत छोड़ना”

ये सुन महक अपना सर झुका लेती है और मृत्युंजय बस अपनी माँ को घूरता हुआ गाड़ी ऑफिस की तरफ बढ़ा लेता है।

मृत्युंजय ऑफिस-गेट पे पहुच ही रहा होता है की वो देखता है की मेन गेट पे मीडिया वालों का जमावड़ा है वो समझ जाता है की मीडिया यहाँ बीती रात मंडप से गायब हुई उसकी बहन मीरा और मंगेतर शनाया के बारे में, मसाला लेने आए है। वो गाड़ी मेन- गेट से कुछ दूर पहले ही रोक देता है और महक को धमकाते हुए कहता है-

“तुम्हारी वजह से मुझे आज इन मीडिया के सवालों का जवाब देना पड़ेगा, अब चुपचाप यहीं गाड़ी मे बैठी रहना मेरे वापस आने तक”

महक हाँ में सर को हिलाती है।

ऑफिस के मेन गेट पे मीडिया के लोग मृत्युंजय को घेर लेते है और उसकी फोटो लेने लगते है, उन्ही मे से एक पत्रकार मृत्युंजय से सवाल करता है,

“आखिर क्या वजह है की आपकी मंगेतर मंडप से गायब हो गई ? आपकी और शनाया मैडम की शादी क्या सिर्फ एक बिजनस डील थी जो टूट गई ?”

शादी को डील कहने पर वहाँ मोजूद सभी पत्रकार और मीडिया के लोग हंसने लगे। की तभी उस भीड़ के पीछे से एक खनकती हुई, महीन आवाज़ आती है, ये महक है जो पीछे से सब सुन रही थी।

“किसने कहाँ इनकी शादी बिजनस डील है? शादी तो किस्मत से होती है जिनको एक होना होता है वो मिल ही जाते है किसी न किसी तरह, जैसे हम दोनों मिल गये, मैं हूँ इनकी अर्धागिनी महक!”

मृत्युंजय बस महक को गुस्से से देखता ही रह जाता है मगर मीडिया के नाते वो बोल नहीं पाता है कुछ। महक उस पत्रकार से आगे कहती है,

“डील तो आप करने आए है इतने बड़े बिजनस टाइकून मृत्युंजय के पर्सनल लाइफ को मीडिया मे उछाल के, सिर्फ मसाला कमाने के लिए। हम दोनों यहाँ ऑफिस मे पूजा करने आए है अगर आप लोगों के सवाल खतम हो गए हो तो क्या हम अंदर जाए?”

महक ने कड़क आवाज़ में कहा।

महक के आ जाने से मृत्युंजय मीडिया के कई सवालों से बच गया लेकिन उसका पारा चढ़ गया था अंदर आते ही वो महक पे चीखते हुए बोला,

“कौन अर्धांगिनी? कैसी अर्धांगिनी? मेरी माँ ने तुमसे दो मीठी बाते क्या कर ली तुमने तो खुद को मेरी बीवी ही मान लिया है, एक बार बस मीरा मिल जाए फिर तुम्हें तुम्हारी औकात दिखाता हूँ!”

महक रोनी सूरत बना के सर झुका लेती है और किसी छोटे बच्चे के जैसे बोलती है,

“मैं तो बस आपकी मदद कर रही थी”

इतना बोल कर वो सर नीचे कर के रोने लगती है और अपनी साड़ी को सम्हालते हुए मन ही मन बड़बड़ाती है,

“ये साड़ी और ये आदमी दोनों ही मेरे बस के बाहर की चीज है।”

मृत्युंजय गुस्से से जल्दी-जल्दी कैबिन के अंदर चला जाता है। महक जैसे ही कैबिन मे घुसती है उसकी साड़ी का पल्लू कैबिन के हैन्डल में फंस जाता है, महक हड़बड़ा जाती है और उसे निकालने की कोशिश करने लगती है। इधर मृत्युंजय को लगता है की महक कहाँ रह गई वो कैबिन के गेट पे आता है तो चौंक जाता है उसके मुह से निकलता है,

“म ... महक ..”

महक इतनी खूबसूरत लग रही थी उस पीली साड़ी में कि मृत्युंजय का पत्थर जैसा दिल भी धड़कने लगा। महक का पल्लू का एक सिरा हैंडल पे फंसा हुआ था, जिससे उसकी गोरी कमर और सुंदर गर्दन की हल्की झलक मिल रही थी। पीली साड़ी में उसके झलकते हुए शरीर की अदाएं और भी आकर्षक हो रही थीं। लंबे, बिखरे काले घने बाल उसके खूबसूरत चेहरे पर आ रहे थे, जिन्हें महक बार-बार हटाने की कोशिश कर रही थी। ऐसा करते हुए वह किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम लग रही थी। मृत्युंजय महक को देखता रहता और उसके चेहरे पर अनायास ही एक मुस्कान आ जाती। वो सोचता है,

“माँ ने सही कहा था, इसकी खूबसूरती तो वाकई में एक ‘कोहिनूर-हीरा’ है।”

महक को भनक न लगे इसलिए वो अपने गुस्से वाले रूप में आ के कहता है,

“तुम्हें सिर्फ काम बिगाड़ना ही आता है क्या?”

मृत्युंजय उसका पल्लू हैन्डल से निकालते हुए कहता है।

महक तुरंत ही अपने ब्लाउस को पल्लू से ढंकती है और झेंपते हुए कहती है।

“thank you, आप काम कर लीजिए मैं यहीं रुकती हूँ” महक एक कोने में रखी ऑफिस बॉय की कुर्सी पे बैठते हुए बोलती है।

“वैसे तो तुम्हारा स्टैटस मेरे ऑफिस बॉय से भी नीचे है, लेकिन अब ऑफिस आ ही गई हो तो पूजा कर लो क्योंकि मैं अपनी माँ की बात कभी नहीं टालता हूँ।”

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