खांसी की वजह से मेरी नींद बार-बार टूट रही थी…👉🏻
आखिर मेरी पत्नी, जो गहरी नींद में थी, उठकर मेरे लिए अदरक का काढ़ा बनाने चली गई। जब वह मेरे पास आई, तो उसकी आवाज में सख्ती थी, "काढ़ा पीना ही होगा।"
मैंने मना करने की कोशिश की, "नहीं पीऊंगा, बहुत कड़वा होगा।"
"कड़वा होगा तो भी पीना पड़ेगा।" उसने जैसे फैसला सुनाते हुए कहा।
मैंने हार मान ली, क्योंकि जबरदस्ती के सिवाय कोई और विकल्प नहीं था। काढ़ा पीने के बाद खांसी रुक गई, लेकिन सुबह उठते ही मैंने उसे उलाहना देना शुरू कर दिया, "तुम हमेशा अपनी जिद करती हो।"
उसने शांत स्वर में जवाब दिया, "जिद नहीं, तुम्हारा ख्याल है। काढ़ा न देती तो आराम कैसे मिलता?"
फिर भी उसका जबरदस्ती वाला तरीका मुझे पसंद नहीं आया। मैंने उसे ताने दिए कि वह हमेशा अपने मन की करती है। वह मुस्कुराई और कहा, "मन की? एक साड़ी तक तुम्हारी इजाजत के बिना खरीद नहीं सकती।"
हमेशा की तरह बहस का अंत वहीं हुआ, जहां वह चाहती थी। लेकिन यह सिर्फ एक घटना नहीं थी। हमारी शादीशुदा जिंदगी ऐसे ही छोटे-छोटे खटपटों से भरी हुई थी।
एक और रात, जब उसकी पीठ और कमर में तेज दर्द हुआ, तो मैंने मदद के लिए हाथ बढ़ाया, "लाओ, बाम लगा दूं।"
उसने मना कर दिया, "आपका हाथ बहुत कड़ा है।"
मेरे लिए यह बात चुभ गई। आखिरकार, मैंने उसे बाम लगाने पर मना लिया। लेकिन कुछ ही मिनटों में उसने मेरे हाथों की शिकायत करते हुए झटक दिया, "हाथ है या हथौड़ा? आपसे कुछ नहीं होगा।"
यह सुनकर मुझे गुस्सा आ गया, "तुम्हें मेरी हर बात में नुक्स निकालने की आदत है।"
"क्योंकि आप सही करते ही कहां हैं," उसने पलटकर जवाब दिया।
बहस लंबी खिंच गई। मैंने तंज कसा, "दूसरी औरत होती तो खुश होती कि उसका पति आधी रात को उसकी इतनी परवाह करता है।"
"दूसरी औरत?" उसने तीखा सवाल किया।
उसकी नजरों से बचने के लिए मैं मुंह फेरने लगा, लेकिन वह समझ गई। "रजनी की बात कर रहे हो न? जिसे तुमने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी और उसने कभी स्वीकार नहीं किया।"
मेरी चोरी पकड़ी जा चुकी थी। यह सच था कि मैंने अपने कॉलेज के दिनों की प्रेमिका रजनी को खोजा था। जब उसने मेरी रिक्वेस्ट स्वीकार की, तो मैं खुश हो गया था, लेकिन तुरंत उसने मुझसे दोस्ती तोड़ ली।
पत्नी की बातों ने मुझे कटघरे में खड़ा कर दिया। "तुम जानते हो, अब वह भी किसी की पत्नी है। शायद अपने पति को कड़वा काढ़ा पिला रही हो, जैसे मैं तुम्हें पिलाती हूं।"
उसकी यह बात मेरे दिल को छू गई। सच में, रजनी अब अतीत थी। मैंने अपनी पत्नी की तरफ देखा, जिसने मेरे लिए न जाने कितनी बार अपनी नींदें और आराम त्याग दिए थे।
यह एहसास हुआ कि हम इंसान अक्सर अपने अतीत की राख में चिंगारी खोजते रहते हैं, जबकि हमारे आज की खुशियां हमारे सामने होती हैं।
निष्कर्ष यही है कि अतीत को छोड़कर आगे बढ़ें। जब तक हम बीते दिनों के सपनों में उलझे रहेंगे, न खुद चैन से जी पाएंगे और न अपने साथ रहने वालों को खुश रख पाएंगे। जीवन को वर्तमान में जिएं, क्योंकि यही सबसे सच्चा और अमूल्य है।
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