हर स्त्री का जीवन मूल्यवान है, और उसे भी प्यार, सम्मान और स्वतंत्रता पाने का हक है।

 18 साल की उम्र में मेरी शादी हुई। मेरे पति मेरे ही सबसे अच्छे दोस्त भी बन गए। वह हमेशा कहा करते थे, "प्यार, रोमांस, और शारीरिक आकर्षण तो एक दिन खत्म हो सकता है, लेकिन हमारा साथ हमेशा रहेगा।" उनकी यह बात सुनकर कभी-कभी डर लगता था कि कहीं हमारे रिश्ते में कोई कमी न आ जाए। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ।उनके स्पर्श में ऐसा जुनून और गरमी थी कि मेरा पूरा वजूद सिहर उठता। वह मेरे दिल के हर कोने को बखूबी समझते थे, मेरी हर जरूरत का ख्याल रखते थे—चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक।



शादी के बाद, जब मैं ससुराल आई, तो पहली बार रसोई में हलवा बनाने की कोशिश की। हलवा खराब हो गया। उस पल मेरी सांसें थम-सी गई थीं। लेकिन मेरी सास ने मुस्कुराते हुए कहा, "कोई बात नहीं बेटा, पहली बार में सब सीखते हैं।" उन्होंने न केवल मुझे संभाला, बल्कि मेहमानों के सामने मेरी तारीफ करते हुए उस हलवे को परोसा। उनकी ममता और अपनापन मुझे भीतर तक छू गया।


एक सुबह मैं देर से उठी। शर्मिंदगी के साथ रसोई में गई, तो देखा मेरे ससुर चाय बना रहे थे। माफी मांगते हुए मैंने कहा, "मुझे पहले उठ जाना चाहिए था।" उन्होंने मेरी ओर देखते हुए कहा, "आज की चाय खास है, क्योंकि मैं अपनी बेटी के साथ पी रहा हूँ।" यह सुनकर मेरी आंखों में खुशी के आंसू आ गए।उनका परिवार मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत हिस्सा बन गए थे। लेकिन फिर, सब कुछ बदल गया।


शादी के सात महीने बाद मेरा जन्मदिन आया। इसे खास बनाना चाहते थे। उन्होंने मुझसे वादा किया कि इस बार का जन्मदिन मुझे हमेशा याद रहेगा। लेकिन उस दिन की शुरुआत ने मेरी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। मेरे लिए फूल लेने गए थे। उसी दौरान, एक दुर्घटना में उनका निधन हो गया। वह खबर सुनते ही मेरी दुनिया जैसे बिखर गई। मुझे ऐसा लगा, जैसे मेरी आत्मा का एक हिस्सा मुझसे हमेशा के लिए छिन गया हो।


उनकी मौत के सदमे से उबरने में मुझे पूरे दो साल लगे। इन दो सालों में मेरे सास-ससुर ने मुझे हर कदम पर संभाला। उन्होंने एक दिन मुझसे कहा, "बेटा, तुम्हारी जिंदगी खत्म नहीं हुई है। तुम अभी 26 साल की हो। तुम्हें फिर से जीने का हक है।"


लेकिन जब मैंने दोबारा जीवन बसाने की कोशिश की, तो समाज ने मुझे दोषी ठहराया।


आज भी समाज विधवा महिलाओं को संदेह की नजर से देखता है। शादी के बाद के रिश्ते पवित्र माने जाते हैं, लेकिन विधवा हो जाने के बाद वही महिला "अपवित्र" बन जाती है। पुरुष को तुरंत दूसरा जीवनसाथी मिल जाता है, जबकि महिलाएं समाज की कठोर धारणाओं और सीमाओं में जकड़ जाती हैं।


मेरे जीवन में क्या गुनाह था? क्या मेरा प्यार और मेरा रिश्ता पवित्र नहीं था? क्यों मेरे लिए नए रिश्तों के अवसरों को सीमित किया गया, जबकि पुरुष को सब कुछ सहजता से मिल जाता है?


समाज को विधवा और तलाकशुदा महिलाओं के प्रति अपनी मानसिकता बदलनी होगी। हर महिला को सम्मान और खुशहाल जीवन जीने का हक है। यह समाज की जिम्मेदारी है कि वह इन महिलाओं को समान अधिकार दे।


हर स्त्री का जीवन मूल्यवान है, और उसे भी प्यार, सम्मान और स्वतंत्रता पाने का हक है।

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