हमारी छत से सटी पड़ोसी की छत

 शादी के बहुत दिनों बाद मैं पीहर आई थी. पटना के एक पुराने महल्ले में ही मेरा पीहर था और आज भी है. यहां 6-7 फुट की गलियों में मकान एकदूसरे से सटे हैं. छतों के बीच भी 3-4 फुट की दूरी थी. मेरे पति संकल्प मुझे छोड़ कर विदेश दौरे पर चले गए थे. साल में 2-3 टूअर तो इन के हो ही जाते थे. मैं मम्मी के साथ छत पर बैठी थी. शाम का वक्त था. हमारी छत से सटी पड़ोसी की छत थी. उस घर में एक लड़का अविनाश रहता था. मुझ से 4-5 साल बड़ा होगा. मेरे ही स्कूल में पढ़ता था. मुझे अचानक उस की याद आ गई. मैं मम्मी से पूछ बैठी, ‘‘अविनाश आजकल कहां है?’’



‘‘मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानती हूं. तुम्हारी शादी से कुछ दिन पहले वह यह घर छोड़ कर चला गया था. वैसे भी वह तो किराएदार था. पटना पढ़ने के लिए आया था.’’


मैं किचन में चाय बनाने चली गई पर मुझे अपने बीते दिन अनायास याद आने लगे थे. मन विचलित हो रहा था. किसी काम में मन नहीं लग रहा था. कप में चाय छान रही थी तो आधी कप में और आधी बाहर गिर रही थी. मन रहरह कर अतीत के गलियारों में भटकने लगा था. खैर, मैं चाय बना कर छत पर आ गई. ऊपर मम्मी पड़ोस वाली छत पर खड़ी आंटी से बातें कर रही थीं. दोनों के बीच बस 3 फुट की दूरी थी. मैं ने अपनी चाय आंटी को देते हुए कहा, ‘‘आप दोनों पी लें. मैं अपने लिए फिर बना लूंगी.’’


मैं उन दोनों से अलग छत के दूसरे कोने पर जा खड़ी हुई. अंधेरा घिरने लगा था. बिजली चली गई, तो बच्चे शोर मचाते बाहर निकल आए. कुछ अपनीअपनी छत पर आ गए. ऐसे ही अवसर पर मैं जब छत पर होती थी, अविनाश मुझे देख कर मुसकराता था, तो कभी हवा में हाथ उठाता था. मैं उस वक्त 8वीं कक्षा में थी. मैं अकसर कपड़े सुखाने छत पर आती थी. अविनाश भी उस समय छत पर ही होता था खासकर छुट्टी के दिन.


एक दिन जब मैं छत पर खड़ी थी तो बिजली चली गई. कुछ अंधेरा था. अविनाश ने पास आ कर एक परची मुझे पकड़ा दी और फिर जल्द ही वहां से मुसकराता हुआ भाग खड़ा हुआ. मैं बहुत डर गई थी. परची को कुरते के अंदर छिपा लिया. बचपन और जवानी के बीच के कुछ वर्ष लड़कियों के लिए बड़े कशमकश भरे होते हैं. कभी मन उछलनेकूदने को करता है तो कभी बाली उम्र से डर लगता है. कभी किसी को बांहों में लेने को जी चाहता है तो कभी खुद किसी की बांहों में कैद होने को जी करता है.


मैं ने बाद में उस परची को पढ़ा. लिखा था, ‘‘दीपा, तुम मुसकराती हो तो बहुत सुंदर लगती हो और मुझे यह देख कर खुशी होती है.’’


ऐसे ही समय बीत रहा था. मेरी दीदी की शादी थी. मेहंदी की रस्म थी. मैं ने भी दोनों हाथों में मेहंदी लगवाई और शाम को छत पर आ गई. अविनाश भी अपनी छत पर था. उस ने मुसकरा कर हाथ लहराया. न जाने मुझे क्या सूझा कि मैं ने भी अपने मेहंदी लगे हाथ उठा दिए. उस ने इशारों से रेलिंग के पास बुलाया तो मैं किसी आकर्षणवश खिंची चली गई. उस ने तुरंत मेरे हाथों को चूम लिया. मैं छिटक कर अलग हो गई.


अविनाश को जब भी मौका मिलता मुझे चुपके से परची थमा जाता था. यों ही मुसकराती रहो, परची में अकसर लिखा होता. मुझे अच्छा तो लगता था, पर मैं ने न कभी जवाब दिया और न ही कोई इजहार किया.


मैं ने प्लस टू के बाद कालेज जौइन किया था. एक दिन अचानक दीदी ने अपनी ससुराल से कोई अच्छा रिश्ता मेरे लिए मम्मीपापा को सुझाया. मैं पढ़ना चाहती थी पर सब ने एक सुर में कहा, ‘‘इतना अच्छा रिश्ता चल कर अपने दरवाजे पर आया है. इस मौके को नहीं गंवाना है. तुम बाकी पढ़ाई ससुराल में कर लेना.’’


मेरी शादी की तैयारी चल रही थी. अविनाश ने एक परची मुझे किसी छोटे बच्चे के हाथ भिजवाई. लिखा था कि शादी मुबारक हो. ससुराल में भी मुसकराती रहना. शायद तुम्हारी शादी की मेहंदी लगे हाथ देखने का मौका न मिले, इस का अफसोस रहेगा.


मैं शादी के बाद ससुराल इंदौर आ गई. पति संकल्प अच्छे नेक इंसान हैं, पर अपने काम में काफी व्यस्त रहते थे. काम से फुरसत मिलती तो क्रिकेट के शौकीन होने के चलते टीवी पर मैच देखते रहेंगे या फिर खुद बल्ला उठा कर अपने क्रिकेट क्लब चले जाएंगे. वैसे इस के लिए मैं ने उन से कोई गिलाशिकवा नहीं किया था.


मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान टूटा, ‘‘दीपा, कल पड़ोसी प्रदीप अंकल की बेटी मोहिनी की मेहंदी की रस्म है और लेडीज संगीत भी है. तुम तो उसे जानती हो. तुम्हारे स्कूल में ही थी. तुम से 2 क्लास पीछे. तुम्हें खासकर बुलाया है. मोहिनी ने भी कहा था दीपा दी को जरूर साथ लाना. तुम्हें चलना होगा.’’


अगले दिन शाम को मैं मोहिनी के यहां गई. दोनों हाथों में कुहनियों तक मेहंदी लगवाई. कुछ देर तक लेडीज संगीत में भाग लिया, फिर बिजली चली गई तो मैं अपने घर लौट आई. हालांकि वहां जनरेटर चल रहा था. म्यूजिक सिस्टम काफी जोर से बज रहा था. मैं यह शोरगुल ज्यादा नहीं झेल पाई, इसलिए चली आई.


मैं अपनी छत पर गई. मुझे अविनाश की याद आ गई. मैं ने अचानक मेहंदी वाले दोनों हाथों को हवा में लहरा दिया. पड़ोस वाली आंटी ने अपनी छत से मुझे देखा. वे समझीं कि मैं ने उन्हें हाथ दिखाए हैं. रेलिंग के पास आ कर मुझे पास बुलाया और फिर मेरे हाथ देख कर बोलीं, ‘‘काफी अच्छे लग रहे हैं मेहंदी वाले हाथ. रंग भी पूरा चढ़ा है. दूल्हा जरूर बहुत प्यार करता होगा.’’


मैं ने शरमा कर अपने हाथ हटा लिए. रात में मैं लैपटौप पर औनलाइन थी. मैं ने अप्रत्याशित अविनाश की फ्रैंड रिक्वैस्ट देखी और तत्काल ऐक्सैप्ट भी कर लिया. थोड़ी ही देर में उस का मैसेज आया कि कैसी हो दीपा और तुम्हारी मुसकराहट बरकरार है न? संकल्प को भी तुम्हारी मुसकान अच्छी लगती होगी.’’


मैं आश्चर्यचकित रह गई. इसे संकल्प के बारे में कैसे पता है. अत: मैं ने पूछा, ‘‘तुम उन्हें कैसे जानते हो?’’


‘‘मैं दुबई के सैंट्रल स्कूल में टीचर हूं. संकल्प यहां हमारे स्कूल में कंप्यूटर और वाईफाई सिस्टम लगाने आया था. बातोंबातों में पता चला कि वह तुम्हारा पति है. उस ने ही तुम्हारा व्हाट्सऐप नंबर दिया है.’’


‘‘खैर, तुम बताओ, कैसे हो? बीवीबच्चे कैसे हैं?’’ मैं ने पूछा.


‘‘पहले बीवी तो आए, फिर बच्चे भी आ जाएंगे.’’


‘‘तो अभी तक शादी नहीं की?’’


‘‘नहीं, अब कर लूंगा.’’


‘‘क्यों?’’


‘‘हर क्यों का जवाब हो, जरूरी नहीं है. वैसे एक बार तुम्हारी मुसकराहट देखने की इच्छा थी. खैर, छोड़ो और क्या हाल है?’’


‘‘पड़ोस में मोहिनी की मेहंदी की रस्म में गई थी.’’


‘‘तब तो तुम ने भी अपने हाथों में मेहंदी जरूर लगवाई होगी.’’


‘‘हां.’’


‘‘जरा वीडियो औन करो, मुझे भी दिखाओ. तुम्हारी शादी की मेहंदी नहीं देख सका था.’’


‘‘लो देखो,’’ कह कर मैं ने वीडियो औन कर अपने हाथ उसे दिखाए.


‘‘ब्यूटीफुल, अब एक बार वही पुरानी मुसकान भी दिखा दो.’’


‘‘यह तुम्हारे रिकौर्ड की सूई बारबार मुसकराहट पर क्यों अटक जाती है.’’


‘‘तुम्हें कुछ पता भी है, एक भाषा ऐसी है जो सारी दुनिया जानती है.’’


‘‘कौन सी भाषा?’’


‘‘मुसकराहट. मैं चाहता हूं कि सारी दुनिया मुसकराती रहे और बेशक दीपा भी.’’ मैं हंस पड़ी.


वह बोला, ‘‘बस यह अरमान भी पूरा हो गया.’’


मुझे लगा मेरी भी सुसुप्त अभिलाषा पूरी हुई. अविनाश के बारे में जानना चाह रही थी. अत: बोली, ‘‘अपनी शादी में बुलाना नहीं भूलना.’’


‘‘अब पता मिल गया तो भूलने का सवाल ही नहीं उठता. इसी बहाने एक बार फिर तुम्हारे मेहंदी वाले हाथ और वही मुसकराता चेहरा भी देख लूंगा.’’


‘‘अब ज्यादा मसका न लगाओ. जल्दी से शादी का कार्ड भेजो.’’


‘‘खुशी हुई शादी के बाद तुम्हें बोलना तो आ गया. आज से पहले तो कभी बात भी नहीं की थी.’’


‘‘हां, इस का अफसोस मुझे भी है.’’


एक बार फिर बिजली चली गई. इंटरनैट बंद हो गया. अविनाश कितना चाहता था मुझे शायद मैं नहीं जान पाती अगर उस से आज बात नहीं हुई होती.


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4 Comments

  1. very nice story

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  2. Avinash kitna chahta tha yeh jaane ki zarurat hi nhi thi shaadi ke baad

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    1. ekdum sahi bola..aise hi shuru hota hai sab...married women ko ghar me ek hamesha kam hi lagata hai.

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  3. Without offending your freedom to write and female feelings , I still have a question. The very way of writing and putting attractive picture is looking to arouse interest. You may say otherwise people won’t read . Still, this is how the society starts looking at married women also as vulnerable. The society is not God . It is already filled with degradation due to violation of sanctities of Bhartiya Women shown every now and then as a Normal in movies or social
    Media . Your ways of depiction only adds to it rather than reduce it. My humble view aimed not to criticise you but to share with you the view . You may / may not agree, that’s ok

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