एक छोटे से गाँव में, जहाँ रातें शांत और तारे चमकते थे, रहती थी अनन्या। वह एक खूबसूरत, स्वतंत्र आत्मा थी, जिसके सपने गाँव की सीमाओं से कहीं बड़े थे। अनन्या को रात में जंगल के किनारे बने पुराने मंदिर के पास बैठना पसंद था, जहाँ हवा में रहस्य और जादू की महक होती थी।
एक रात, जब चाँद अपनी पूरी शोभा में था, अनन्या मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी थी। हल्की ठंडी हवा उसके बालों को सहला रही थी। तभी, उसे पेड़ों के बीच से एक आहट सुनाई दी। उसका दिल धड़कने लगा, पर जिज्ञासा ने उसे डर पर काबू पाने की हिम्मत दी। उसने धीरे से कदम बढ़ाए और झाड़ियों के पीछे देखा।
वहाँ खड़ा था एक युवक, जिसके चेहरे पर चाँदनी की रोशनी पड़ रही थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो अनन्या को अपनी ओर खींच रही थी। "कौन हो तुम?" अनन्या ने हल्के काँपते स्वर में पूछा।
"मैं रुद्र," उसने जवाब दिया, उसकी आवाज़ में गहराई थी। "मैं इस जंगल का रक्षक हूँ। और तुम, इतनी रात को यहाँ क्या कर रही हो?"
अनन्या ने हँसते हुए कहा, "मैं सितारों से बातें करने आई हूँ।" उसकी बेबाकी पर रुद्र मुस्कुराया। दोनों बातों में खो गए। रुद्र ने उसे जंगल के रहस्य बताए, उन आत्माओं की कहानियाँ जो रात में जंगल में भटकती थीं। अनन्या ने उसे अपने सपनों के बारे में बताया, शहर की चकाचौंध और अपनी किताबों की दुनिया के बारे में।
जैसे-जैसे रात गहरी होती गई, दोनों के बीच का आकर्षण बढ़ता गया। रुद्र ने अनन्या का हाथ थामा और उसे जंगल के बीच बने एक छोटे से तालाब के पास ले गया, जहाँ पानी में चाँद की परछाई नाच रही थी। वहाँ, तालाब के किनारे, उन्होंने एक-दूसरे को देखा, और बिना कुछ कहे, उनके होंठ पास आए। उस चुंबन में गर्मी थी, जुनून था, और एक अनकहा वादा था।
पर जैसे ही सुबह की पहली किरण जंगल में आई, रुद्र ने अनन्या को अलविदा कहा। "मैं इस जंगल का हिस्सा हूँ, अनन्या। मैं यहाँ से नहीं जा सकता। पर तुम्हारी आत्मा मेरे साथ रहेगी।"
अनन्या की आँखों में आँसू थे, पर उसका दिल भर चुका था। वह गाँव लौटी, लेकिन उस रात की गर्मी, उस जुनून की आग, हमेशा उसके साथ रही। वह रात, वह मुलाकात, एक ऐसी कहानी बन गई जो अनन्या के दिल में हमेशा जिंदा रही।
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