मेरी बहूँ रोज रात 2 बजे चीखती और रोती. एक रात तो वो हुआ जो हमने कभी सोचा भी नहीं था रात 2 बजे मेरी बहूँ कमरे से बाहर आकर बैठ गई उसके बाल खुले थे. शरीर पर कपडे कहीं भी जा रहें थे. वो ऐसा क्यों करती थी यह सच सामने आया तो मेरे पैरो तले जमीन खिसक गई.
मेरे बेटे राजीव की शादी मैंने बड़ी मुश्किल से तय की थी। वह एक लड़की से प्यार करता था, लेकिन मुझे लगा कि वह हमारे परिवार और मेरे बेटे के लिए सही नहीं है। मैंने उसे बहुत समझाया और फिर उसकी शादी सुधा नाम की एक सीधी-सादी, संस्कारी लड़की से करवा दी। मुझे लगा कि सुधा हमारे परिवार और राजीव के लिए सबसे बेहतर होगी।
शादी के बाद सुधा घर के कामों में लगी रहती थी और बड़ों का पूरा सम्मान करती थी। उसकी परवरिश और स्वभाव देखकर मुझे लगा कि मैंने अपने बेटे के लिए सही लड़की चुनी है। लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद, एक रात करीब 2 बजे मेरे बेटे के कमरे से सुधा की चीखने की आवाजें आने लगीं। मैंने और मेरे पति ने इस पर ध्यान नहीं दिया, सोचकर कि यह पति-पत्नी का आपसी मामला है।
अगली रात फिर वही हुआ। सुधा की चीखें सुनकर मेरी बेटी डर गई और हमसे सवाल करने लगी। लेकिन हमने यह तय किया कि सुबह इस बारे में राजीव और सुधा से बात करेंगे। सुबह मैंने राजीव से पूछा, लेकिन वह टाल-मटोल करता रहा। सुधा से पूछा तो उसने भी इनकार कर दिया कि कुछ हुआ है। उसकी आंखों और चेहरे की थकान साफ दिखा रही थी कि वह रातभर सो नहीं पाई।
फिर भी, हर रात वही घटना होती रही। सुधा की चीखें सुनाई देतीं और हमारा पूरा परिवार बेचैन हो जाता। एक रात, सुधा अचानक अपने कमरे से बाहर आकर चौक में बैठ गई। उसके बाल खुले हुए थे, कपड़े अस्त-व्यस्त थे और वह जोर-जोर से रो रही थी। यह देखकर हम सभी डर गए। राजीव ने बताया कि यह हर रात होता है और सुबह सुधा को कुछ भी याद नहीं रहता।
सुबह मैंने फैसला किया कि सुधा को उसके मायके भेज दूंगी। राजीव ने सुधा को उसके घर छोड़ दिया और वहां की स्थिति साफ की। सुधा के परिवार ने कहा कि उनकी बेटी कभी ऐसा व्यवहार नहीं करती थी। मैंने खुद को कोसा कि मैंने शायद राजीव की शादी ठीक से नहीं सोची।
तीन महीने तक सुधा मायके में रही। राजीव ने साफ कहा कि वह सुधा को वापस नहीं लाना चाहता। लेकिन फिर एक दिन सुधा खुद अपना सामान लेकर हमारे घर आ गई। उसने मुझसे कहा, "मांजी, मैं जानती हूं कि आप क्या सोच रही हैं, लेकिन सच सुनिए।"
सुधा ने जो बताया, वह सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने कहा कि यह सब नाटक राजीव ने उसे करने के लिए कहा था ताकि वह हमारे घर से डरकर चली जाए और वे दोनों अलग रह सकें। राजीव चाहता था कि सुधा परिवार से अलग होकर बड़े शहर में उनके साथ रहे। सुधा ने पहले मना किया, लेकिन जब राजीव ने उससे बात करना बंद कर दिया, तो उसने उसकी बात मान ली।
सुधा की सच्चाई सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ। राजीव ने गुस्से में कहा कि उसने सुधा को सिर्फ मेरे खिलाफ बदला लेने के लिए ऐसा करने को कहा था। मैंने राजीव से साफ कह दिया, "इस घर में मेरी बहू रहेगी। अगर तुम इसे स्वीकार नहीं कर सकते, तो तुम्हें इस घर में रहने की जरूरत नहीं।"
धीरे-धीरे, समय के साथ राजीव सुधा को स्वीकारने लगा। मैंने अपने बेटे के लिए सचमुच हीरा चुना था, लेकिन शायद मेरा बेटा ही उसके लायक नहीं था। मैंने सुधा को गले लगाकर कहा कि वह इस घर का हिस्सा है और हमेशा रहेगी। थोड़े समय बाद सब ठीक हो गया, और हमारा परिवार फिर से खुशहाल हो गया।
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