योनि के बाद यदि सबसे संवेदनशील अंग यदि कोई है तो वो स्तन होता है, संभोग शुरुवात करने, पुरुष को रिझाने में इसका बहुत बड़ा योगदान होता है,
"खाना भी नहीं खाने दोगी तुम? तरस खाओ मुझ पर। सारा दिन ऑफिस की टेंशन झेलो, तुम्हारे लिए दिन-रात मेहनत करो, और जब कुछ पल चैन के घर आओ, तो तुम्हारी किचकिच सुनो। इंसान हूँ यार, मशीन नहीं।" अरमान की आवाज़ में थकावट और नाराजगी साफ झलक रही थी।
"हाँ, हाँ, मैं ही सब गलत हूँ। तुम तो दूध के धुले हो, अरमान। पैसा जिंदगी जीने के लिए कमाया जाता है, पैसा कमाने के लिए नहीं जिया जाता। हम सब ही नहीं रहेंगे तो इस पैसे का क्या करोगे? याद भी है तुम्हें कि आखिरी बार बच्चों और मेरे साथ कब समय बिताया था?" प्रिया की आवाज़ में दर्द और गुस्सा था।
बात बढ़ती देख, अरमान ने चाबी उठाई और बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गया। वह कार में बैठने की बजाय पैदल ही चल पड़ा। कहाँ जा रहा था, यह खुद उसे भी नहीं पता था। कॉलोनी के आखिरी छोर पर चौकीदार विजय के क्वार्टर से आती धीमी आवाज़ों ने उसके कदम रोक दिए।
"खाना नहीं खाई तुमने?" विजय की आवाज़ आई।
"आपके बिना पहले कब खाई जो आज खाती?" उसकी पत्नी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"तुम पागल हो, इतना मत किया करो। बीमार हो जाओगी।"
"आप हैं ना, आपको देखकर सब ठीक हो जाता है।" फिर थोड़ी देर तक खामोशी छाई रही।
अरमान वहीं ठिठक गया। उसे लगा कि उसकी अमीरी और विजय की गरीबी के बीच असली फर्क सुकून का था। उसने अपना फोन निकाला और प्रिया का नंबर डायल किया।
प्रिया ने फोन उठाया, लेकिन कुछ नहीं बोली। शायद वह अपनी सिसकियां दबाने की कोशिश कर रही थी।
"आई एम सॉरी, प्रिया। मैं सच में माफी चाहता हूँ। तुम सही कहती हो, मैं तुम्हारे लिए ही कमाता हूँ और तुम्हें ही भूल जाता हूँ। अब ऐसा नहीं होगा। प्लीज़ मुझे माफ कर दो।" अरमान की आवाज़ में सच्चाई थी।
"तुम पागल हो एकदम। ऐसे कोई बच्चों की तरह रोता है। अब घर आ जाओ, खाना खाते हैं," प्रिया ने कहा।
"नहीं, तुम बच्चों को लेकर गेट पर आओ। आज हम बाहर खाना खाने चलेंगे। घर का खाना विजय को दे देना।"
थोड़ी देर में प्रिया बच्चों के साथ गेट पर आ गई। अरमान ने उन्हें किसी बड़े होटल की बजाय एक छोटे से ढाबे पर ले गया। प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हें कैसे याद आया? मुझे ढाबे का खाना कितना पसंद है।"
खाने के दौरान सबने हंसी-मजाक किया। अरमान ने वर्षों बाद परिवार को इतना खुश देखा। रात को घर लौटकर उसने प्रिया को वैसे ही गले लगाया, जैसे उनके प्यार के शुरुआती दिनों में किया करता था। प्रिया की आंखों में सुकून और खुशी थी। अरमान ने महसूस किया कि वह कितना भटक गया था।
अगले दिन ऑफिस जाते वक्त उसने विजय को बुलाया।
"आज रात तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का खाना हमारे साथ है। तैयार रहना।" विजय को यह सुनकर यकीन नहीं हुआ। अक्सर साहब लोग बचा-खुचा खाना देते थे, लेकिन किसी ने घर बुलाकर खाने की बात नहीं की थी।
रात को विजय और उसका परिवार अरमान के घर आया। प्रिया ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। उस रात ने अरमान को सिखाया कि जिंदगी का असली आनंद रिश्तों में छिपा है, न कि पैसों की दौड़ में। विजय की मासूमियत और प्रिया के प्यार ने उसे सुकून की ओर वापसी का रास्ता दिखा दिया था।
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