गर्मियों की एक शाम थी। सूरज ढल चुका था, और आसमान में लालिमा बिखरी हुई थी। गाँव की गलियाँ शांत थीं, लेकिन इस शांति के पीछे एक अशांति छिपी हुई थी। गाँव के बाहर एक छोटा सा झोपड़ा था, जहाँ दो बहनें रहती थीं। बड़ी बहन का नाम राधा था, और छोटी का नाम सीता। दोनों बहनें गाँव की मासूमियत और सादगी की प्रतिमूर्ति थीं। उनके माता-पिता कई साल पहले चल बसे थे, और तब से दोनों ने एक-दूसरे का सहारा बनकर जीवन जीया था।
राधा और सीता गाँव के स्कूल में पढ़ाती थीं। उनकी मेहनत और ईमानदारी के कारण गाँव वाले उन्हें बहुत सम्मान देते थे। लेकिन गाँव में कुछ लोग ऐसे भी थे जो उनकी सादगी और सुंदरता से जलते थे। उन्हें लगता था कि दोनों बहनों को अपनी जगह पता होनी चाहिए, और वे उन्हें नीचा दिखाने के लिए हर मौके की तलाश में रहते थे।
एक दिन, गाँव में एक मेले का आयोजन हुआ। पूरा गाँव वहाँ जुटा हुआ था। राधा और सीता भी मेले में गईं। वे खुश थीं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उनके लिए यह मेला एक अंधेरे सपने की शुरुआत होगी। मेले में गाँव के कुछ नौजवानों ने उन्हें घेर लिया। वे शराब के नशे में चूर थे और उनकी नियत खराब थी। उन्होंने राधा और सीता को गंदी नजरों से देखा और फिर उन पर अश्लील टिप्पणियाँ करने लगे।
राधा ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन नशे में धुत उन नौजवानों ने उनकी एक न सुनी। उन्होंने दोनों बहनों को घेर लिया और सरेआम उनकी इज्जत लूटने की कोशिश की। गाँव वाले वहाँ मौजूद थे, लेकिन किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। सब चुपचाप देखते रहे, जैसे यह सब एक मनोरंजन का हिस्सा हो।
राधा और सीता ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया, लेकिन उनकी आवाज़ गाँव की हवा में खो गई। उन्हें लगा कि उनकी दुनिया खत्म हो गई है। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन उन आँसुओं में उनकी बेबसी और गुस्सा दोनों छिपे हुए थे।
जब वे नौजवान थक गए, तो उन्होंने दोनों बहनों को वहीं छोड़ दिया और चले गए। राधा और सीता वहाँ पड़ी रहीं, जैसे उनकी आत्मा उनके शरीर से निकल गई हो। उन्हें लगा कि अब वे कभी भी इस घटना से उबर नहीं पाएंगी।
लेकिन राधा और सीता मजबूत थीं। उन्होंने फैसला किया कि वे इस घटना को चुपचाप सहन नहीं करेंगी। उन्होंने गाँव के सरपंच के पास जाकर शिकायत दर्ज कराई। लेकिन सरपंच ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। उसने कहा कि यह सब उनकी गलती थी कि वे मेले में गईं, और अब उन्हें चुप रहना चाहिए।
राधा और सीता ने हार नहीं मानी। उन्होंने पुलिस के पास जाकर केस दर्ज कराया। पुलिस ने भी उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन राधा और सीता ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने मीडिया को इस घटना के बारे में बताया, और जल्द ही यह खबर पूरे देश में फैल गई।
लोगों ने राधा और सीता का समर्थन किया, और उनके खिलाफ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। अंततः, उन नौजवानों को गिरफ्तार किया गया, और उन पर मुकदमा चलाया गया। राधा और सीता ने साबित किया कि अगर इंसान हिम्मत न हारे, तो वह किसी भी अन्याय के खिलाफ लड़ सकता है।
इस घटना ने गाँव को हिलाकर रख दिया। लोगों ने महसूस किया कि उनकी चुप्पी और उदासीनता ने कितना बड़ा नुकसान किया है। राधा और सीता ने न केवल अपनी इज्जत की लड़ाई लड़ी, बल्कि समाज को एक सबक भी सिखाया कि अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना कितना जरूरी है।
आज राधा और सीता गाँव में नहीं रहतीं। वे एक बड़े शहर में रहती हैं, जहाँ वे महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती हैं। उनकी कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणा है जो अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहती है। उन्होंने साबित किया कि इज्जत लूटने वाले लोगों के खिलाफ लड़ाई में, सबसे बड़ा हथियार हिम्मत और संघर्ष है।
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