मैं 21 की और मेरे पति 30 के क्या होगा मेरा

मैंने 21 साल की उम्र में शादी की थी। मेरे पति की उम्र 30 साल थी। शुरुआत में, हमारे बीच सब कुछ परफेक्ट था। चाहे दिन में जितनी भी बहस होती, रात होते-होते हम सब कुछ भूलकर फिर से एक-दूसरे के करीब महसूस करते थे।

शादी के लिए मैं पहले तैयार नहीं थी, क्योंकि उम्र का फासला बहुत ज्यादा था, लेकिन मेरे परिवार ने बहुत जोर दिया और मैं मान गई। मैंने सोचा था कि शायद समय के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा।

वक्त बीतने के साथ, चीजें बदलने लगीं। मैं युवा थी, मेरे पास ढेर सारी ऊर्जा थी। मैं अपने दोस्तों के साथ हंसी-खुशी बातें करना पसंद करती थी, लेकिन मेरी सास को यह बिल्कुल पसंद नहीं आता था। उनका कहना था, "तुम अभी नए-नए शादीशुदा हो, तुम्हें अपने ससुर और देवर का सम्मान करना चाहिए।"

मैंने अपनी आदतें बदलने की कोशिश नहीं की, जिससे उन्हें मुझसे और नफरत हो गई। लेकिन मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं थी। मुझे लगता था कि मैं अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी सकती हूं।

एक साल बाद, मेरे पति को काम के सिलसिले में विदेश जाना पड़ा। मैंने उनसे कहा कि मैं उनके साथ चलना चाहती हूं, लेकिन उन्होंने मना कर दिया, कहने लगे कि यह सिर्फ दो महीने की बात है और उनके माता-पिता और बीमार भाई को मेरी ज़रूरत है।

हमारी बहस हो गई। मैंने उनसे कहा, "मैंने तुमसे शादी की है, तुम्हारे परिवार से नहीं।" उन्होंने आखिरकार कहा, "ठीक है, पासपोर्ट बनवाओ।"

जब मेरा पासपोर्ट तैयार हो गया, तो वह अचानक परेशान हो गए। उन्होंने कहा, "तुम जो चाहो करती हो।" मैंने जवाब दिया, "हां, मुझे किसी की राय की जरूरत नहीं है, मैं अपनी फैसले खुद ले सकती हूं।"

यह मामला बढ़ता गया, और मेरी सास भी मुझसे कहने लगी कि सिर्फ दो महीने की बात है, तुम क्यों इतनी जिद कर रही हो। मैंने फैसला लिया कि अगर मुझे रहना ही है, तो मैं अपने माता-पिता के घर पर रहूंगी।

मेरे पति जब विदेश से लौटे, तो उन्होंने मुझे लेने नहीं आया। फोन पर कहा, "शादी का मतलब होता है सहयोग, लेकिन तुम तो सिर्फ अपने बारे में सोचती हो। अब यह रिश्ता नहीं चल सकता।"

फिर उन्होंने तलाक के कागज भेज दिए। मेरे परिवार ने बहुत कोशिश की कि हम दोनों फिर से एक हो जाएं, लेकिन मैंने अपने आत्म-सम्मान को सबसे ऊपर रखा। 22 साल की उम्र में, मैं तलाकशुदा हो गई थी।

तलाक के बाद, मेरी दुनिया मानो एक पल के लिए थम सी गई थी। बहुत कुछ खो दिया था, लेकिन एक गहरी समझ भी विकसित हुई थी। एक तरफ जहां परिवार और समाज का दबाव था, वहीं दूसरी तरफ, मेरी आत्म-स्वीकृति और आत्म-सम्मान ने मुझे टूटने नहीं दिया। इस प्रक्रिया में मैंने अपने आप को पहचानने का मौका पाया।

कुछ महीनों बाद, मेरे माता-पिता ने मेरी चिंता करते हुए मेरी शादी की बात उठाई। उन्हें लग रहा था कि मुझे फिर से एक मौका मिलना चाहिए, लेकिन मैं इस समय खुद को लेकर पूरी तरह से स्पष्ट थी। मैंने सोचा कि क्यों न अपनी ज़िंदगी को नए सिरे से शुरू किया जाए।

मैंने यह ठान लिया कि अगर मैं फिर से शादी करूंगी, तो वह उस शख्स से होगी जो मेरे विचारों और जीवनशैली को समझे, जो मुझे सशक्त बनाए और जो मेरे आत्म-सम्मान का सम्मान करे। मैंने किसी से जुड़ने के बजाय खुद को पहले से समझने और सही दिशा में सोचने का समय लिया।

कुछ महीनों बाद एक नए व्यक्ति से मुलाकात हुई, जो मेरे जीवन में बदलाव का कारण बना। वह बेहद समझदार था, उसके विचार और दृष्टिकोण मेरे जीवन से मेल खाते थे। हम दोनों ने धीरे-धीरे एक-दूसरे को समझा, और मैंने महसूस किया कि अब मैं अपने रिश्ते में बंधने के लिए तैयार हूं।

हमने काफी समय तक एक-दूसरे से बातें की, एक-दूसरे के परिवारों से मिले और यह तय किया कि हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाएंगे। इस बार, यह शादी एक साझेदारी की तरह थी, जहां दोनों का सम्मान था, और कोई दबाव नहीं था। यह शादी सिर्फ प्यार और समझ पर आधारित थी।

जब हमने शादी की, तो मुझे लगा कि यह अब तक का सबसे अच्छा फैसला था। हमने एक-दूसरे के साथ जीवन जीने के लिए जो वादे किए, वे बहुत ही सच्चे और वास्तविक थे। हम दोनों अपनी-अपनी पहचान और सपनों के साथ इस रिश्ते में थे।

अब, मेरी जिंदगी में एक नया अध्याय था, और इस बार मैंने यह सीखा था कि रिश्ते में संतुलन, समझ और आत्म-सम्मान सबसे जरूरी होते हैं। मैंने भी खुद को पहचानने और अपने सपनों का पीछा करने की पूरी स्वतंत्रता दी थी।

दूसरी शादी ने मुझे यह एहसास दिलाया कि जीवन में कुछ भी स्थिर नहीं होता। कभी-कभी हमें अपने गलत फैसलों से सीखने का मौका मिलता है, और फिर एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ने का समय आता है।

अब, मैं समझती हूं कि जीवन में खुद से प्यार करना और अपने आत्म-सम्मान का ध्यान रखना सबसे महत्वपूर्ण है। चाहे वह शादी हो, दोस्ती हो या कोई अन्य रिश्ते, जब तक आत्म-सम्मान और समझ न हो, तब तक कुछ भी टिकाऊ नहीं हो सकता।

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